Tuesday, March 30, 2010

Osho ~ जागो मन जागरण की बेला



जागो मन जागरण की बेला |
अलस उनींदे नैन उघारो |
सतत तरंगित ज्योति निहारो |
आगत्य की आरती उतारो |
गत पीढ़ा में दुखद बिसारो |
यत किंचीत नवज्योति समेंटो |
दुःख प्रसन्न अध्याय समेंटो |
जीवन में नव कण कण तोलो |
आशा में नव प्रकरण घोलो |
आगत उद्बोधन की बेला | जागो मन जागरण की बेला |

बहुरंगी कुस्मावली कुसमित |
मादक मारुत उर्मी तरंगित |
रस्मी रास हिलोल तरंगित |
वसुधा अंचल लॉस तरंगित |
कल कुजन निर्वाद तरंगित |
नाना सौरव मदीर तरंगित |
रस ही रस छबी लॉस तरंगित |
रस ही रस नवमोद तरंगित |
जागो नवप्रमोद की बेला | जागो मन जागरण की बेला |

सीत विगत नव मधुरत आयी |
वन उपवन नव उसमा छायी |
विट्प बेली कुस्मावली आयी |
पल्लव पल्लव छबी मुस्कायी |
व्योम वितान नील छबी छायी |
मदीर सूरद चल अनील समायी |
कण कण व्यापत आनंद नुनायी |
प्रक्रिती नवोड़ा बन मुस्कायी |
जागो मन बसंत की बेला | जागो मन जागरण की बेला |

और जब जाग जाओ तभी सुबह | और जब तक सोये रहो तब तक रात |
जागे को सदा सुबह है | सोये को सदा रात |
रात्री बाहर नहीं और ना प्रभात बाहर है |
सूरज तुम्हारे भीतर उगना है | तभी होगी वास्तविक सुबह |
बाहर के सूरज उगते हि डूबते है | भितर का सूरज उगा तो डूबता नहीं |
जागो मन जागरण की बेला |
और जागरण की बेला हमेशा है | ऐसा कोई क्षण नहीं जब तुम जाग ना सको | ऐसा कोई पल नहीं जब तुम पलक ना खोल सको |
आँख बंध किये हो ये तुम्हारा निर्णय है | आँख खोलना चाहो तो ईसी क्षण क्रांती घट सकती है |
और समस्त सिद्धो ने , समस्त बुद्धो ने बार बार यही पुकारा है , बार बार यही कहा है कि चाहो तो अभी जाग जाओ |
यह स्वप्न तुम्हारे निर्मित है | यह चिंताए तुम्नेही फेंला राखी है | यह नरक तुम्नेही बसा रखा है |
तुम्हारे अतीरिक्त और कोई जिम्मेवार नहीं |
कोई दूसरा तुम्हे जगा भी न सकेगा |
कोई लाख उपाय करे , तुमने निर्णय किया हो न जागने का तो सब उपाय व्यर्थ चले जायेंगे |